Wednesday, July 20, 2011

संहार...

संहार...
 
हृदय करे चीत्कार,प्रभु अब शुरू करो संहार,

बहुत हो चुका इक्का-दुक्का हो अब धुवांधार |

सांप सपोले बहुत हो गए जगह नहीं अब शेष,

दूध पिलायें इनको कितना बहुत खा चुके ठेस |

जिसको अपना समझ के पाला हाय रे मेरे देश,

लज्जित करके तुमको दिखाया अपना पापी भेष |

इनको जब तक माफ करोगे,सब सहेगें अत्याचार,  

हृदय करे चीत्कार,प्रभु अब शुरू करो संहार,

बहुत हो चुका इक्का-दुक्का हो अब धुवांधार |

बरसों बीते देख के इनके नाटक वो जज्बाती,

परोपकार का ओढ़ के चोला ऐसा रंग जमाती |

रंग बदलना इनका देख कर गिरगिट भी शर्माती,

लुटा देश को इसने इतना जिह्वा बोल न पाती |

कब तक यूँ हम सहते रहेंगें इनका घोर प्रहार,

हृदय करे चीत्कार,प्रभु अब शुरू करो संहार,

बहुत हो चुका इक्का-दुक्का हो अब धुवांधार |

धरती बदली अम्बर बदला बदली सूरत और सीरत,

एक चीज़ जो अडिग अटल है इनकी कपटी नीयत |

देश को हर जगह से इसने नोच-नोच कर लूटा,

देश-प्रेम कर्त्तव्य से इनका बरसों से नाता छुटा |

अति हो चुकी प्रभु अब ले हाथ उठो तलवार,

हृदय करे चीत्कार,प्रभु अब शुरू करो संहार,

बहुत हो चुका इक्का-दुक्का हो अब धुवांधार |



      



Friday, July 15, 2011

यह आग कब बुझेगी...

यह आग कब बुझेगी...

थकती आँखों ने मेरी वो सारा मंजर देखा है,

इसी बदन ने मेरे वो सारा तड़पन झेला है,

कुछ गोली थी बंदूकों की चुभने वाले खंजर भी थे,

बेरहम कुछ बम के गोले और चंद बहुत आतंकी थे,

इसी सड़क पर उनलोगों ने बहुतों को हलकान किया,

मत पूछो इस कातिल ने कितनों को लहूलुहान किया,

यह वही जगह है जहां लोग बाहर जाने को आते थे,

कुछ खट्टी-मीठी यादों को सीने में समाये जाते थे,

वह निशा बड़ी ही भयावह थी भूले से नहीं भुलाती है,

सच कहता हूँ में हे ईश्वर अब भी वो बड़ा रुलाती है,

उस मानवता के दुश्मन ने मानवता का यूँ खून किया,

कुछ यहाँ गिरे कुछ वहाँ गिरे सर्वश्व हमारा छीन लिया,

वो जिंदादिली वो भोलापन वो तेज दौड़ती जिंदगियां,

कुछ बचा नहीं बस शेष यहाँ में और मेरी सिसकियाँ,

मैं निर्बल नहीं मैं योद्धा हूँ लड़ना ही मेरा धर्म रहा,

गिर कर उठना फिर से लड़ना सदैव यही कर्त्तव्य रहा,

बस एक टीस जो सदा मुझे आठों प्रहर सताती है,

जिसने मेरा सबकुछ लुटा बन गया देश की धाती है,

क़दमों के उसकी वो आहट बैचेन मुझे कर जाती है,

ये सुनने वाले लोग मेरे वो बोझ मेरे सीने पर है,

हलक से उसके प्राण खींच लो नीति यही सिखाती है,

बोझमुक्त कर मुझे जिला दो यह मुंबई कथा सुनाती है |