Wednesday, July 29, 2015

आखिरी सलाम



"इस सदी के कबीर को मेरी भावभीनी अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि"


अधर से टुटा जो तारा वो सबका ही दुलारा था
क्या मुल्ला वो क्या पंडित सारे जग से न्यारा था ।
न उसका धर्म था कोई न उसकी कोई जाती थी
किया जो कर्म उसने हर तरफ उसकी ही ख्याति थी ।
हुनर उसके यूँ सर चढ़कर कुछ इस कदर बोले
की सारा विश्व नत मस्तक क्या बोलें? क्या बोलें ?
समूचे हिन्द के जो इश्क़ का पर्याय बन गया
कहा जो उसने कभी जो भी समाचार बन गया ।
उठे जो हाथ करोड़ों अंतिम सलामी में उसकी
ज़माना याद रखे उसको जो कलाम बन गया ।