सफर ...
आज कल परसों में बरसों बीत गए,
वो बचपन का खेल अल्हड जवानी अर्सों बीत गए|
नयी निक्कर जो पहनी वो कल चुस्त हो गयी,
कमबख्त चलती घडी भी सुस्त हो गयी ।
याद किया तो वो काफी पहले का वाकया था,
आधी नींद में जो घडी देखी वो दुरुस्त नहीं थी ।
वो बूढा पलंग जिस पे सोता हूँ अब भी,
घुटने में उसके कुछ बीमारी हो गयी
तकिया रज़ाई वो कड़वी दवाई,
बुढ़ापे की साथी हमारी हो गयी
रात बहुत काली दिन बड़े लंबे हो गए,
लम्हे चुनते चुनते बरसों हो गए |
आज कल परसों में बरसों बीत गए,
वो बचपन का खेल अल्हड जवानी अर्सों बीत गए|
नयी निक्कर जो पहनी वो कल चुस्त हो गयी,
कमबख्त चलती घडी भी सुस्त हो गयी ।
याद किया तो वो काफी पहले का वाकया था,
आधी नींद में जो घडी देखी वो दुरुस्त नहीं थी ।
वो बूढा पलंग जिस पे सोता हूँ अब भी,
घुटने में उसके कुछ बीमारी हो गयी
तकिया रज़ाई वो कड़वी दवाई,
बुढ़ापे की साथी हमारी हो गयी
रात बहुत काली दिन बड़े लंबे हो गए,
लम्हे चुनते चुनते बरसों हो गए |