Wednesday, March 23, 2011

ऐसा क्यों होता है...


ज़िन्दगी की धुप में जब पाँव जलने लगते हैं,
अंतर आग में जब हम झुलसने लगते हैं,
हर तरफ विरानगी तन्हायाँ ही दिखती हैं,
करवटों में रात दिन सिसकियों में सोता है,
एक ही आवाज़ आती "ऐसा क्यों होता है"|


जब अपने लोग बेगानों में दिखने लगते हैं,
रिश्तेदारों की गली अनचाहा रस्ता लगता है,
दोस्तों का फ़ोन भी नश्तर सरीखा लगता है,
अँधेरे कोनों में दिन यूँ ही निकलने लगता है,
एक ही आवाज़ आती "ऐसा क्यों होता है"|


मंदिरों और मस्जिदों में शौक़ से न जाते थे,
नाश्तिक बन कर बड़े गर्व से इठलाते थे,
आज ऐसा क्या हुआ मंदिर नज़र आने लगा,
मंदिरों की सीढियों में अब भी दिल यूँ रोता है,
एक ही आवाज़ आती "ऐसा क्यों होता है"|


वक़्त गुजरा,हम भी संभले,नींद भी आने लगी,
दोस्तों के फ़ोन पर यूँ प्यार भी आने लगा,
चिलचिलाती जेठ में अब छाँव ही बस दिखता है,
आज भी पर भोर में तकिया क्यों गीला होता है,
एक ही आवाज़ आती "ऐसा क्यों होता है"|

Friday, March 18, 2011

होलिया में उड़े रे गुलाल ...


रे होलिया रे होलिया होली है....
गाँव का सारा लोग लुगाई लगा दू प्रेम का गुलाल
भंग भंग भंग पिलो पचा के चंग (2)

रे होलिया मैं उड़ा रे गुलाल
कइयो रे  मंगेतर से
होलिया मैं उड़े रे गुलाल
कइयो रे मंगेतर से
म्हारी ये मंगेतर चुडला वाली  (2)
घड़िया वालो रे नवाब कइयो रे मंगेतर से (2)

होलिया मैं उड़े रे गुलाल
कइयो रे मंगेतर से (2)
म्हारी ये मंगेतर नथनी वाली (2)
रे भूचा वालो रे नवाब कइयो रे मंगेतर से (2)

होलिया मैं उड़े रे गुलाल
कइयो रे मंगेतर से
म्हारी ये मंगेतर पायल वाली (2)
रे धोत्या वालो रे नवाब कइयो रे मंगेतर से (2)

होलिया मैं उड़े रे गुलाल
कइयो रे मंगेतर से
म्हारी ये मंगेतर नखरे वाली (2)
पीछे भागे रे नवाब कइयो रे मंगेतर से (2)
होलिया मैं उड़े रे गुलाल
कइयो रे मंगेतर से (8)