लाल खून से सना हिमालय फिर इतिहास बताता है,
छोटी आँखों के पीछे फैला षड़यंत्र आज सुनाता है,
तुम ही बताओ मुल्क का मेरे कैसा वो अंजाम हुआ,
फिजा में फिर से वही हवाएं बहने चारों और लगी,
खबरदार में करता हूँ की चिता हमारी सजने लगी |
मेरी छाती से अब तक वह लहू न धुलने पाया है,
वो गहरा ज़ख्म मेरा अब तलक न भरने पाया है,
वो इतिहास जो गर कभी फिर दुहराया जायेगा,
कसम मुझे की एक भी कोई यूँ न जिंदा जायेगा,
कहर बना हिमराज ये उनपर ऐसे जोर से टूटेगा,
छोटी आँखों का वारिस इस धरा में न कोई छूटेगा |
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