बरसों का बिछड़ा प्यार...
बेजान पड़ी सुखी टहनी भी
हरी भरी हो जाती है,
बारिश की पहली बूँद का
पुरजोर असर होता है |
बरसों का बिछडा प्यार मिले
तो यार गजब होता है |
ओस की वो बूँद, कोहरे की वो धुंध;
सब नया नया लगता है |
वही पुराना चाँद फिर आँखों में जँचता है |
बरसों का बिछड़ा प्यार मिले
तो यार गजब लगता है |
बारिश की वो बूँद फिर मोती से
लगने लगते हैं ...
वीराने सीने में फिर
अरमान सुलगने लगते हैं |
आँखों में सारी रात
करवटों में दिन होता है |
बरसों का बिछड़ा प्यार मिले
तो यार गजब लगता है |
शहनाई बजने लगती है,
फिर समां पिघलने लगता है |
हार रात दिवाली लगती है,
हर दिन आँखों में सजता है |
बरसों का बिछड़ा प्यार मिले
तो यार गजब ही लगता है |