Monday, April 25, 2011

उलझन...



गर्दिश में सितारे बहुतों के होंगें,

चमन में बहुत से हमारे भी होंगें,

हमारे कुछ अपने बहारों में होंगें,

बहारों के अपने नज़ारे भी होंगें,

नजारों में टूटी हवेली भी होगी,

हवेली में फैली दरारे भी होंगीं,

दरारों में फैली वो मकड़ी के जाले,

वो मकड़ी किसी के सहारे ही होगी,

सहारों की अपनी परिधि भी होगी,

परिधि में उलझी बहुत जिंदगानी,

हर इक ज़िन्दगी की कहानी तो होगी,

कहानी में सीधी कुछ टेढ़ी लकीरें,

लकीरों की बुत पर पेसानी तो होगी,

पेसानी पे छलकी पसीने की बूंदें,

पसीने में बिंदु की अपनी निशानी,

निशाने पे वैसे ज़माना भी होगा,

जमाने की होंगी वो अपनी दीवारे,

दीवारों के पीछे खड़ा सोचता हूँ,

मौजों की अपनी रवानी तो होगी|





Random thoughts...

thought1:-

किसी को प्यार करना तो कोई बात ही नहीं,

किसी का प्यार पा लेना कुछ बड़ी बात है,




किसी प्यार से वही प्यार पा लेना,क्या बात है?


उसी प्यार को अंत तक निभा देना बातें तमाम है|



thought2:-



उम्रे तमाम पढता रहा दोस्तों की मानवता एक चीज़ है,
एक एहसास सीने की,जीने का फ़लसफा,एक तहजीब है,
कसम खुदा की ढूंढा बहुत अहले शहर में इस नाचीज़ को,
लोग घूरते हैं,कसते हैं फब्तियां,कहते है बड़ा अजीब है |

Thursday, April 21, 2011

माँ भारती: हिमालय की जुबानी...

माँ भारती: हिमालय की जुबानी...: "लाल खून से सना हिमालय फिर इतिहास बताता है, छोटी आँखों के पीछे फैला षड़यंत्र आज सुनाता है, हिंदी-चीनी भाई-भाई,फिर शुरू वहाँ संग्राम हुआ, तुम..."

माँ भारती: हिमालय की जुबानी...

माँ भारती: हिमालय की जुबानी...: "लाल खून से सना हिमालय फिर इतिहास बताता है, छोटी आँखों के पीछे फैला षड़यंत्र आज सुनाता है, हिंदी-चीनी भाई-भाई,फिर शुरू वहाँ संग्राम हुआ, तुम..."

हिमालय की जुबानी...

लाल खून से सना हिमालय फिर इतिहास बताता है,
छोटी आँखों के पीछे फैला षड़यंत्र आज सुनाता है,
हिंदी-चीनी भाई-भाई,फिर शुरू वहाँ संग्राम हुआ,
तुम ही बताओ मुल्क का मेरे कैसा वो अंजाम हुआ,
फिजा में फिर से वही हवाएं बहने चारों और लगी,
खबरदार में करता हूँ की चिता हमारी सजने लगी |
मेरी छाती से अब तक वह लहू न धुलने पाया है,
वो गहरा ज़ख्म मेरा अब तलक न भरने पाया है,
वो इतिहास जो गर कभी फिर दुहराया जायेगा,
कसम मुझे की एक भी कोई यूँ न जिंदा जायेगा,
कहर बना हिमराज ये उनपर ऐसे जोर से टूटेगा,
छोटी आँखों का वारिस इस धरा में न कोई छूटेगा |