यह आग कब बुझेगी...
इसी बदन ने मेरे वो सारा तड़पन झेला है,
कुछ गोली थी बंदूकों की चुभने वाले खंजर भी थे,
बेरहम कुछ बम के गोले और चंद बहुत आतंकी थे,
इसी सड़क पर उनलोगों ने बहुतों को हलकान किया,
मत पूछो इस कातिल ने कितनों को लहूलुहान किया,
यह वही जगह है जहां लोग बाहर जाने को आते थे,
कुछ खट्टी-मीठी यादों को सीने में समाये जाते थे,
वह निशा बड़ी ही भयावह थी भूले से नहीं भुलाती है,
सच कहता हूँ में हे ईश्वर अब भी वो बड़ा रुलाती है,
उस मानवता के दुश्मन ने मानवता का यूँ खून किया,
वो जिंदादिली वो भोलापन वो तेज दौड़ती जिंदगियां,
कुछ बचा नहीं बस शेष यहाँ में और मेरी सिसकियाँ,
मैं निर्बल नहीं मैं योद्धा हूँ लड़ना ही मेरा धर्म रहा,
गिर कर उठना फिर से लड़ना सदैव यही कर्त्तव्य रहा,
बस एक टीस जो सदा मुझे आठों प्रहर सताती है,
जिसने मेरा सबकुछ लुटा बन गया देश की धाती है,
क़दमों के उसकी वो आहट बैचेन मुझे कर जाती है,
ये सुनने वाले लोग मेरे वो बोझ मेरे सीने पर है,
हलक से उसके प्राण खींच लो नीति यही सिखाती है,
Superlike, it resembles the pain which we have suffered and are suffering. Very well written
ReplyDeleteमैं निर्बल नहीं मैं योद्धा हूँ लड़ना ही मेरा धर्म रहा,
ReplyDeleteगिर कर उठना फिर से लड़ना सदैव यही कर्त्तव्य रहा,
==============================
Ishwar hame, hamare jan ko himmat de aur hamari srkaar ko sadbuddhi
It reminds of the pain and the recovery . I hope the last line is seriously taken into account.
ReplyDelete