संहार...
हृदय करे चीत्कार,प्रभु अब शुरू करो संहार,
बहुत हो चुका इक्का-दुक्का हो अब धुवांधार |
सांप सपोले बहुत हो गए जगह नहीं अब शेष,
दूध पिलायें इनको कितना बहुत खा चुके ठेस |
जिसको अपना समझ के पाला हाय रे मेरे देश,
लज्जित करके तुमको दिखाया अपना पापी भेष |
इनको जब तक माफ करोगे,सब सहेगें अत्याचार,
हृदय करे चीत्कार,प्रभु अब शुरू करो संहार,
बहुत हो चुका इक्का-दुक्का हो अब धुवांधार |
बरसों बीते देख के इनके नाटक वो जज्बाती,
परोपकार का ओढ़ के चोला ऐसा रंग जमाती |
रंग बदलना इनका देख कर गिरगिट भी शर्माती,
लुटा देश को इसने इतना जिह्वा बोल न पाती |
कब तक यूँ हम सहते रहेंगें इनका घोर प्रहार,
हृदय करे चीत्कार,प्रभु अब शुरू करो संहार,
बहुत हो चुका इक्का-दुक्का हो अब धुवांधार |
धरती बदली अम्बर बदला बदली सूरत और सीरत,
एक चीज़ जो अडिग अटल है इनकी कपटी नीयत |
देश को हर जगह से इसने नोच-नोच कर लूटा,
देश-प्रेम कर्त्तव्य से इनका बरसों से नाता छुटा |
अति हो चुकी प्रभु अब ले हाथ उठो तलवार,
हृदय करे चीत्कार,प्रभु अब शुरू करो संहार,
बहुत हो चुका इक्का-दुक्का हो अब धुवांधार |
बहुत अच्छी प्रार्थना है अब तो कुछ हो जाना चाहिए |
ReplyDeletebahut sahi rahul bhai .... maja aya padh ke ek baar me padh gye .... ye kavita lahar samaan
ReplyDeleteBahut badhiya likhte ho.
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