सर्वश्व हम लुटा चुके,पुकारता ये छंद है,
की ६४ बसंत खर्चकर भी मुंह क्यों बंद है ?
माना निकम्मी सरकार कम्बख्क्त कर्जखोर है,
हिंद की भाषा का क्या बस यही मोल है ??
या हिंद के बेटों का अब वो खून न है खौलता,
जिसको देखे मात्र से वनराज भी था बोलता |
हिंदी का सम्मान गर लौटाओ तो कुछ बात हो,
खैच लो जिह्वा सभी की जो न मेरे साथ हो |
वर्षों सहे अपमान अपने ही वतन की गोद में,
और कितने साल झोंके जायेंगें फिर शोध में |
रंच मात्र भी किसी को दुःख नहीं अपमान का,
पता नहीं कितने बरस मैं और जिंदा रह पाऊँ |
अपने ही मुल्क में और कितनी बेईज्ज़ती पाऊँ,
ए देश के कर्णधार में और कहाँ जाऊँ ??
बहुत सही!!
ReplyDeleteहिंदी दिवस पर बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं
आपको भी ढेरों बधाई सधन्यवाद |
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