Thursday, September 29, 2011

सब ठाट पड़ा रह जायेगा जब लाद चलेगा बंजारा...

सब ठाट पड़ा रह जायेगा जब लाद चलेगा बंजारा...




टुक हर्स-ओ-हवा को छोड़ मियाँ, मत देस बिदेस फिरे मारा
कज्ज़ाक अजल का लूटे है दिन रात, बजा कर नक्कारा
क्या बुधिया, भैंसा, बैल, शुतुर, क्या गौएं, पल्ला, सर भारा
क्या गेहूं, चावल, मूठ, मटर, क्या आग, धुआं, क्या अंगारा
सब ठाट पड़ा रह जाएगा, जब लाद चलेगा बंजारा

गर तू है लक्खी बंजारा, और खेप भी तेरी भारी है
ए ग़ाफिल! तुझ से भी चढ़ता, इक और बड़ा ब्योपारी है
क्या शक्कर, मिस्री, कंद, गरी, क्या सांभर, मीठा, खारी है
क्या दाख, मुनक्का, सोंठ, मिर्च, क्या केसर, लौंग, सुपारी है
सब ठाट पड़ा रह जाएगा, जब लाद चलेगा बंजारा

तू बुधिया लादे, बैल भरे, जो पूरब पच्छिम जावेगा
या सूद बढ़ा कर लावेगा, या टोटा, घाटा पावेगा
कज्ज़ाक अजल का रस्ते में, जब भाला मार गिरावेगा
धन, दौलत, नाती, पोता क्या, इक कुनबा काम न आवेगा
सब ठाट पड़ा रह जाएगा, जब लाद चलेगा बंजारा


हर मंज़िल में अब साथ तेरे ये, जितना डेरा डंडा है
ज़र, दाम, दरम का भांडा है, बंदूक, सिपर और खांडा है
जब नायक तन का निकल गया, जो मुल्कों मुल्कों हांडा है
फिर हांडा है, न भांडा है, न हलवा है, न मांडा है
सब ठाट पड़ा रह जाएगा, जब लाद चलेगा बंजारा

जब चलते चलते रस्ते में, ये गोन तेरी ढल जावेगी
इक बधिया तेरी मट्टी पर, फिर घास न चरने आवेगी
ये खेप जो तूने लादी है, सब हिस्सों में बट जावेगी
दिही, पूत, जंवाई, बेटा क्या, बंजारन पास न आवेगी
सब ठाट पड़ा रह जाएगा, जब लाद चलेगा बंजारा

ये खेप भरे जो जाता है, ये खेप मियाँ मत गिन अपनी
अब कोई घड़ी, पल, साइत में, ये खेप बदन की है खपनी
क्या थाल, कटोरे चांदी के, क्या पीतल की डिबिया, ढपनी
क्या बर्तन सोने रूपये के, क्या मिटटी की हंडिया, चपनी
सब ठाट पड़ा रह जाएगा, जब लाद चलेगा बंजारा

ये धूम धड़क्का साथ लिए, क्यों फिरता है जंगल जंगल
इक तिनका साथ न जावेगा, मौक़ूफ़ हुआ जब अन्न और जल
घर बार, अटारी, चौबारे, क्या ख़ासा, तनसुख, और मलमल
क्या चलून, परदे, फर्श नए, क्या लाल पलंग और रंग महल
सब ठाट पड़ा रह जाएगा, जब लाद चलेगा बंजारा

क्यों जी पर बोझ उठाता है इन गोनों भारी भारी के
जब मौत लुटेरा आन पड़ा, फिर दोने हैं हो पारी के
क्या साज़ जडाव, ज़र, जेवर, क्या गोटे, थान किनारी के
क्या घोड़े जीन सुनहरी के, क्या हाथी लाल उमारी के
सब ठाट पड़ा रह जाएगा, जब लाद चलेगा बंजारा

मगरूर न हो तलवारों पर, मत फूल भरोसे ढालों के
सब पत्ता तोड़ के भागेंगे, मुँह देख अजल के भालों के
क्या डिब्बे, हीरे, मोती के, क्या ढेर ख़जाने मालों के
क्या बुक्चे ताश, मुशज्जर के, क्या तख्ते शाल दोशालों के
सब ठाट पड़ा रह जाएगा, जब लाद चलेगा बंजारा

हर आन नफे और टोटे में, क्यों मरता फिरता है बन बन
टुक ग़ाफिल दिल में सोच ज़रा, है साथ लगा तेरे दुश्मन
क्या लौंडी, बांदी, दाई, ददा, क्या बंदा, चेला, नेक चलन
क्या मंदिर, मस्जिद, ताल, कुआं, क्या घात, सरा, क्या बाग़ चमन
सब ठाट पड़ा रह जाएगा, जब लाद चलेगा बंजारा

जब मर्ग फिरा कर चाबुक को, ये बैल बदन का हांकेगा
कोई नाज समेटेगा तेरा, कोई गोन सिये और टाँकेगा
हो ढेर अकेला जंगल में, तू खाक लहद की फांकेगा
उस जंगल में फिर आह 'नज़ीर', इक फुनगा आन न झांकेगा
सब ठाट पड़ा रह जाएगा, जब लाद चलेगा बंजारा

- नज़ीर अकबराबादी

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