Wednesday, September 14, 2011

हिंदी की कहानी हिंदी की जुबानी


हिंदी की कहानी हिंदी की जुबानी



सर्वश्व हम लुटा चुके,पुकारता ये छंद है,
की ६४ बसंत खर्चकर भी मुंह क्यों बंद है ?

माना निकम्मी सरकार कम्बख्क्त कर्जखोर है,

हिंद की भाषा का क्या बस यही मोल है ??

या हिंद के बेटों का अब वो खून न है खौलता,

जिसको देखे मात्र से वनराज भी था बोलता |

हिंदी का सम्मान गर लौटाओ तो कुछ बात हो,

खैच लो जिह्वा सभी की जो न मेरे साथ हो |

वर्षों सहे अपमान अपने ही वतन की गोद में,

और कितने साल झोंके जायेंगें फिर शोध में |

रंच मात्र भी किसी को दुःख नहीं अपमान का,

पता नहीं कितने बरस मैं और जिंदा रह पाऊँ |

अपने ही मुल्क में और कितनी बेईज्ज़ती पाऊँ,

ए देश के कर्णधार में और कहाँ जाऊँ ??
   

2 comments:

  1. बहुत सही!!



    हिंदी दिवस पर बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं

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  2. आपको भी ढेरों बधाई सधन्यवाद |

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