Wednesday, July 20, 2011

संहार...

संहार...
 
हृदय करे चीत्कार,प्रभु अब शुरू करो संहार,

बहुत हो चुका इक्का-दुक्का हो अब धुवांधार |

सांप सपोले बहुत हो गए जगह नहीं अब शेष,

दूध पिलायें इनको कितना बहुत खा चुके ठेस |

जिसको अपना समझ के पाला हाय रे मेरे देश,

लज्जित करके तुमको दिखाया अपना पापी भेष |

इनको जब तक माफ करोगे,सब सहेगें अत्याचार,  

हृदय करे चीत्कार,प्रभु अब शुरू करो संहार,

बहुत हो चुका इक्का-दुक्का हो अब धुवांधार |

बरसों बीते देख के इनके नाटक वो जज्बाती,

परोपकार का ओढ़ के चोला ऐसा रंग जमाती |

रंग बदलना इनका देख कर गिरगिट भी शर्माती,

लुटा देश को इसने इतना जिह्वा बोल न पाती |

कब तक यूँ हम सहते रहेंगें इनका घोर प्रहार,

हृदय करे चीत्कार,प्रभु अब शुरू करो संहार,

बहुत हो चुका इक्का-दुक्का हो अब धुवांधार |

धरती बदली अम्बर बदला बदली सूरत और सीरत,

एक चीज़ जो अडिग अटल है इनकी कपटी नीयत |

देश को हर जगह से इसने नोच-नोच कर लूटा,

देश-प्रेम कर्त्तव्य से इनका बरसों से नाता छुटा |

अति हो चुकी प्रभु अब ले हाथ उठो तलवार,

हृदय करे चीत्कार,प्रभु अब शुरू करो संहार,

बहुत हो चुका इक्का-दुक्का हो अब धुवांधार |



      



3 comments:

  1. बहुत अच्छी प्रार्थना है अब तो कुछ हो जाना चाहिए |

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  2. bahut sahi rahul bhai .... maja aya padh ke ek baar me padh gye .... ye kavita lahar samaan

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  3. Bahut badhiya likhte ho.

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