मज़हब के बाजार में आज रंग बिखरे मिले
कुछ हरे, कुछ नीले, कुछ भगवे में मिले |
कुछ को बदस्तूर मंदिर याद आया,
कुछ दरगाह तो कुछ मस्जिदों में मिले |
खेती, बेरोज़गारी, गरीबी और हस्पताल कहीं खो गया,
कसम से ये बावला विकास कहीं खो गया |
किसी को हड़प्पा की खुदाई में गोत्र मिला,
तो किसी को ज़बरदस्त करतारपुर कॉरिडोर मिला |
आगे देखिये जनाब बहुत सा मंज़र अभी बाकी है,
रंगे-महफ़िल और सजेगी अभी चुनाव बाकी है |