Tuesday, November 27, 2018

चुनाव...


मज़हब  के बाजार में आज रंग बिखरे मिले
कुछ हरे, कुछ नीले, कुछ भगवे में मिले |

कुछ को बदस्तूर मंदिर याद आया,
कुछ दरगाह तो कुछ मस्जिदों में मिले |

खेती, बेरोज़गारी, गरीबी और हस्पताल कहीं खो गया,
कसम से ये बावला विकास कहीं खो गया |

किसी को हड़प्पा की खुदाई में गोत्र मिला,
तो किसी को ज़बरदस्त करतारपुर कॉरिडोर मिला |

आगे देखिये जनाब बहुत सा मंज़र अभी बाकी है,
रंगे-महफ़िल और सजेगी अभी चुनाव बाकी है |

4 comments:

  1. Kya baat kahi hai, ek dum khari baat

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  2. क्या खूब लिखे तुम दोस्त। बहुत अच्छे व्यंग से आइना दिखाये इन आदरणीयों को।
    पर दोस्त इनमें गलती शायद जनता की भी है,सब
    बराबर के दोसी हैं। साढ़े साल की करतूतें बस छः महीने की चिकनी चुपड़ी बातों में भूल जाते हैं।
    और कुछ की तो दशकों पुरानी बातें।
    अजी वो भी भूल जातें हैं जब ये मंदिर जाकर मस्जिद वालों बुरा और मस्जिद जाकर मंदिर वालों की बुराई करते हैं वो भी तुरंत शायद हफ्ते में।

    जब तक बना रहेगा देशवाशी पगला,
    बखुब इस्तेमाल करता रहेगा अगला।
    जय हिंद।

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