Monday, February 28, 2011

अनमोल


मिट्टी की सौंधी खुशबू का कोई मोल नहीं होता,
क्षण में जो मिल जाये यूँ ही वह अनमोल नहीं होता |
छोटा बिम्ब हिमालय का सूरज का तेज बताता है,
किन्तु हिमालय की चोटी को हर कोई भेद नहीं पाता |
द्रोणाचार्य धरा पर यारों देखो यहाँ वहाँ मिलता,
पर कमबख्त दुहाई देखो कोई कर्ण नहीं मिलता |
श्रेष्ठ नहीं वह जिसके उपर कोई श्रेष्ठ नहीं होता,
श्रेष्ठ वही है जिसके नीचे सर्वश्रेष्ठ पड़ा होता |

6 comments:

  1. द्रोणाचार्य धरा पर यारों देखो यहाँ वहाँ मिलता,
    पर कमबख्त दुहाई देखो कोई कर्ण नहीं मिलता
    सही कहा आपने कर्ण नहीं मिला अच्छी लगी रचना

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  2. aakhiri 2 line gazab ki hain....superlike

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  3. अच्‍छी रचना।
    गहरे भाव।
    बधाई हो।

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  4. रचना जरा सी और स्पष्टता मांगती है और शायद विस्तार भी...भावों की संपूर्ण झलक देने हेतु....


    सलाह मात्र है, अन्यथा न लें. अनेक शुभकामनाएँ मित्र.

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  5. आप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद.@उड़न तश्तरी महोदय,आपकी सलाह के लिए धन्यवाद,में निश्चय ही कोशिश करूँगा की रचना में थोड़ी स्पष्टता ला सकूँ,एक बार पुनः आप लोगों का धन्यवाद |

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