Monday, December 27, 2010

कुछ बिखरी कवितायें ...

प्रथम सर्ग -


धरा यह हो गयी ग़मगीन पापों के थपेड़ों से 
गगन अब नम नहीं होता हरे जख्मों को खाकर भी | 
ये मंज़र देख सूरज हर तरफ है आग बरसाता 
मुकुट धरती का मारे शर्म के पानी हुआ जाता ||


दूसरा सर्ग -


जिगर में दो हवा इतनी की बस ये आग हो जाये 
नज़र के सामने जो भी पड़े वो खाक हो जाये | 
भरो बारूद सीने में, नज़र में मौत का मंज़र 
प्रलय की बाहँ मांगे आज सृष्टि का समंदर ||


तीसरा सर्ग -


दुनिया में मेरे दोस्त कुछ मुश्किल नहीं होता | 
जिगर में हो अगर हिम्मत तो ठोकर में जहां होगा | 
कभी खुद को खुदा, सबसे जुदा मान कर देखो | 
कोई भी काम हो कमबख्त कुछ मुश्किल नहीं होगा |


चौथा सर्ग -



"नज़र वीरान हो तो क्यों जुबां खामोश होती है
पतझड़ गुजरने पर ही क्यों बरसात आती है
गुजरता वक़्त ही मेरे जख्म क्यों हर बार भरता है
मोहब्बत दिल से बोलो क्या कभी हर बार होता है
इन बातों का बोलो आज कुछ मतलब निकलता है
कुशल तैराक मेरे दोस्त किनारे पर ही मरता है"

पांचवां सर्ग -

"दिल गया, दौलत गई, जज्बात भी जब मर गये
होश आया, दिल भी संभला , दिन भी यूँ कटने लगे
तब अचानक याद आया कुछ भूल आया में वहां
में वही, दिल भी वही पर अब वो जज्बात कहाँ "

छठा सर्ग -

ज़िन्दगी उगता सवेरा, ज़िन्दगी एक शाम है |
ज़िन्दगी असह्य पीड़ा सहने का ही नाम है ||
चंद लम्हों की ख़ुशी फिर गम का ये सैलाब है |
फिर भी जीने को यहाँ हर कोई बेताब है ||

सातवां सर्ग -

टूटा पत्ता शाख का बोलो कहाँ टिक पता है,
चल रही मलय के साथ वो कही उड़ जाता है |
अपनी मिटटी से उखड़ा मुश्किल से फिर लग पता है ,
दिल भी समझा, देश भी पर फिर भी ये हो जाता है |
मर गये तो मेरी किस्मत, जी गये हरियाली उनकी ,
माँ की छोटी गोद में बच्चा कहाँ सुख पाता है |



2 comments:

  1. आप अच्छा लिखते हैं लिखते रहिये ... शुभकामनाएँ

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  2. मुझे ये पंक्तियाँ खासकर संवेदनशील लगीं

    "दिल गया, दौलत गई, जज्बात भी जब मर गये
    होश आया, दिल भी संभला , दिन भी यूँ कटने लगे
    तब अचानक याद आया कुछ भूल आया में वहां
    में वही, दिल भी वही पर अब वो जज्बात कहाँ "
    ....

    अपनी मिटटी से उखड़ा मुश्किल से फिर लग पता है ,
    .
    माँ की छोटी गोद में बच्चा कहाँ सुख पाता है |
    ....
    ज़िन्दगी उगता सवेरा, ज़िन्दगी एक शाम है |
    ज़िन्दगी असह्य पीड़ा सहने का ही नाम है ||
    ....
    कभी खुद को खुदा, सबसे जुदा मान कर देखो |
    कोई भी काम हो कमबख्त कुछ मुश्किल नहीं होगा |

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