एक देश है जो बहुत पहले सोने की चिड़ियाँ के नाम से जाना जाता था | अंग्रेज़ आये सौदागर के शक्ल में और उन्होनें इस देश के साथ यहाँ की जनता को ही खरीद लिया जिसकी दास्तान सुनाने वाले अभी भी सैकड़ों इमारत और दस्तावेज़ मौजूद हैं | अंग्रेज़ आये और उन्होनें इस देश को भरपेट लूटा इतना की कभी सोने की चिड़ियाँ कहलानेवाला यह देश बस चिड़ियाँ ही रह गया | देश आज़ाद हुआ, एक आस जगी की अब नया सवेरा होगा, देश तरक्की करेगा, लोग खुशहाल होगें | सोचा तो बहुत था मैने भी और इस देश की जनता ने भी...की अब अपने लोग के हाथ में सत्ता है, बहुत तरक्की होगी पर आज़ादी के पहले जो परिवार देश के प्रति इतना संजीदा था उसने आज़ादी मिलते ही रंग दिखाना शुरू कर दिया | हमारी गलती थी आज़ादी के उन्माद में हम वो नहीं देख पाये जो उन्होनें उसी वक़्त से दिखाना शुरु कर दिया था |खैर जो भी हो आज़ादी मिली,अपना शासन आया और सत्ता के इन स्वर्थालोलूप शासकों ने रंग दिखाना शुरू कर दिया |
बहुत पहले जो सोने की चिड़ियाँ थी और जिसे अंग्रेजों ने बस चिड़ियाँ रख छोड़ा था अब इन देशी शासकों ने उसके पंख भी नोचने शुरु कर दिये और ये सिलसिला बदस्तूर अभी तक जारी है |
हम माँ भारती की संतान क्या इतने मजबूर हैं की हम अपने लोगों का विरोध भी नहीं कर सकते हैं, जो गलत हैं, जो नकारे हैं, जो लोभी हैं, जो दम्भी हैं और जो दरिन्दे हैं जिन्हें सिर्फ और सिर्फ अपने आप से मतलब है ? मेरा मन तो ये नहीं मानता है की हममें वो साहस नहीं बचा पर में ये जरूर मानता हूँ की हम स्वार्थी हो गये हैं, हम सिमट गये हैं, हमें अपने आप से मतलब रह गया है; हमें न रिश्तेदारों की फिक्र है, न पड़ोशियों की और न समाज की देश तो खैर बहुत दूर की बात है |
हम कब जागेंगे ? कब ? जब हमारे पास बचाने को कुछ बचेगा ही नहीं,या तब जब हमारे जागे रहने और सोये रहने से कुछ बदलनेवाला नहीं होगा | में अपने आप से और आप सब से ये अपील करता हूँ " जाग जाओ ये हिन्दुस्तान वालों वरना सोये ही मर जाओगे " |
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